Pages

या तो रो लो या हँस लो

या तो रो लो 
या हँस लो 
क्या फ़र्क़ पड़ता है
पिता होते तो 
समाधान मिलना मुश्किल न था
माँ होती तो ढाढ़स बँधा देती
उम्मीद जगा देती
कोई तो बड़ा होता


जो सर पर हाथ रख
बस कह देता
सब ठीक हो जाएगा
ये ख़ुद से दिल की बातें
और नमी को छुपाकर
मुस्कुरा देना
सीखना पड़ता है
वक़्त के साथ
और जब सीख जाते हैं
तब किसीको "न "कहना
कितना मुश्किल हो जाता है
शोख़ियाँ बहाल रहने दो
ये बचपन - - - बस
माँ बाप के रहते तक ही रहता है 

No comments:

Post a Comment