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मना लूँ तुम्हें

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ख़फ़ा हो के उठकर चले जा रहे हो
कि संग संग मेरी जाँ लिए जा रहे हो
ये मन भी तुम्हारे ही संग जा रहा है 
बस पैर जैसे ज़मीं पर गड़े हैं
मुझे भी पता है यही तुम कहोगे
जैसे हो तुम वही तुम रहोगे
तुम्हें मैं बदलना नहीं चाहती हूँ
तुम्हारे ही सदके में जाँ वारती हूँ
जाने से हासिल नहीं कुछ भी होगा
जला दिल हमारा तुम्हारा भी होगा
तो इस मसअले को अभी ही मिटा दो
पलटकर ज़रा बस ज़रा मुस्कुरा दो
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वक़्त रुकता नहीं

बस इतनी सी ही तो बात थी
जो उस वक़्त कह देते
तो आज वक़्त कुछ और होता
वो अपनी बात कह गए 
हम सुनकर रह गए
मन में तर्क थे , विरोध था
फिर भी चुप रह गए
आँखों में आँसू लिए
हर फ़र्ज़ पूरा किये
कुछ खोने के डर से
कितना कुछ पाने से रह गए

प्यार से हो

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प्यार के दौर में हर बात बहुत प्यार से हो
रूठना हो कि मनाना हो बहुत प्यार से हो
बातें वो यार की हों या हो ज़माने भर की
आँखों आँखों में जो हो बात बहुत प्यार से हों
सारी दुनिया को भुला दूँ मैं कफ़स में तेरी
ये गिरफ़्तारी करो भी तो बहुत प्यार से हो
देख लूँ सो के , ज़रा ख़्वाब मैं मीठे तेरे
ज़िंदगी का कोई लम्हा तो बहुत प्यार से हो
फिर कभी दे या न दे वक़्त हमें ये मोहलत
वक़्ते रुख़सत दिल भरा प्यार से हो
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चाँद तनहा

चाँद तनहा है आसमान तले 
क्यों न फिर इस ज़मीं की जान जले 
इसको तारों का साथ मिल जाये 
कोई सूरज इसे लगा ले गले 
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दिले बेताब बतला

ऐ दिले बेताब बतला तेरी ख़ातिर क्या करें
आसमाँ से तारे चुन लें चाँद को देखा करें
वो मेरे नज़दीक आकर भी पराया ही रहा
जिसको पाया ही नहीं खोने का ग़म हम क्या करें
ओढ़ ले ख़ामोशियाँ जो बस ज़रा सी बात में
उससे हम फिर क्या कहें कैसे कोई शिक़वा करें
सारे दिन के बाद आई शाम ये दीदार की
प्यार की बातें करे हम वक़्त क्यों ज़ाया करें
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कोई राजकुमार

नहीं पसंद आता माँ को कोई राजकुमार
और पिता चिढ़े से बैठे होते हैं
कहाँ से लायें जो तुम्हारे मन भाये
दोनों ही नहीं कहते
पर दोनों ही समझते हैं
जो भी राजकुमार आएगा
वो ले जायेगा - - - -
उनके जिगर के टुकड़े को
सब कहते हैं
बेटी बड़ी हो गयी
और पिता कहते हैं
नहीं - - - -
अभी कहाँ बड़ी हुई
क्यों आती है ज़िन्दगी में ये घड़ी
क्यों अनचाहे भी हो जाती है बेटी बड़ी
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कुछ ख़्वाहिशें

कुछ ख़्वाहिशें
जो मेरी जागती आँखों का ख़्वाब हैं
वक्त के मनकों पर
जाप की मानिंद
मन्त्र सा पढ़ती हूँ
हर पड़ाव पर देखती हूँ
वक़्त गुज़र गया
ख्वाहिशें ज्यों की त्यों हैं
वक़्ते रुख़सत
जब शुकराना अदा करूँगी
तब हँसकर ज़रूर कहूँगी
ज़िन्दगी तूने जो दिया सो दिया
पर ख़्वाब भी बहुत आला दिखाए
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