बस इतनी सी ही तो बात थी
जो उस वक़्त कह देते
तो आज वक़्त कुछ और होता
जो उस वक़्त कह देते
तो आज वक़्त कुछ और होता
वो अपनी बात कह गए
हम सुनकर रह गए
हम सुनकर रह गए
मन में तर्क थे , विरोध था
फिर भी चुप रह गए
फिर भी चुप रह गए
आँखों में आँसू लिए
हर फ़र्ज़ पूरा किये
हर फ़र्ज़ पूरा किये
कुछ खोने के डर से
कितना कुछ पाने से रह गए
अपना वो नाता थाकितना कुछ पाने से रह गए
पर कहना जो नहीं आता था
तो मन की बात मन ही में रही
बेवजह बेपनाह दुविधा सही
बेवजह बेपनाह दुविधा सही
खुशियाँ मुट्ठी में थीं
बस खोलने की देर थी
बस खोलने की देर थी
सब अपने ही थे
बस कहने की देर थी
बस कहने की देर थी
जो उस वक़्त कह देते
तो आज वक़्त कुछ और होता
तो आज वक़्त कुछ और होता
बस इतनी सी ही तो बात थी
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