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कुछ ख़्वाहिशें

कुछ ख़्वाहिशें
जो मेरी जागती आँखों का ख़्वाब हैं
वक्त के मनकों पर
जाप की मानिंद
मन्त्र सा पढ़ती हूँ
हर पड़ाव पर देखती हूँ
वक़्त गुज़र गया
ख्वाहिशें ज्यों की त्यों हैं
वक़्ते रुख़सत
जब शुकराना अदा करूँगी
तब हँसकर ज़रूर कहूँगी
ज़िन्दगी तूने जो दिया सो दिया
पर ख़्वाब भी बहुत आला दिखाए
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