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मुझे

क्या कहूँ कितनी तिश्नगी है मुझे
अश्क पीकर सुकूँ नहीं है मुझे
मुझको उतना नशा तो दे साकी
जितनी दीवानगी बदी है मुझे
तू ज़रा एक नज़र इधर तो कर
आरज़ू बस सलाम की है मुझे
मेरी इतनी ख़ता कभी न रही
तूने जितनी सज़ाएँ दी हैं मुझे
रस्मे दुनिया में दिल नहीं लगता
ज़िक्र तेरा ही ज़िन्दगी है मुझे
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